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Sunday, May 8, 2011

Life (जिन्दगी)

It was my first poem, wrote it in year 2000. This poem expresses my thoughts for life.The true meaning of life is still hidden but based on my experiences  I wrote this poem.

 Life teaches a lot to everyone and motivates to live it.... 




 "जिन्दगी"

रात के उस ख्वाब में मैंने खुद को एक झील के किनारे  पाया ,
शायद एक जन्नत में पहुँच गयी थी |
फूलो से भरी  वहां बगिया महक रही थी ,
फिर में एक सुनहरी कश्ती में बैठ उसे खेने लगी ,
और उस झील के गहराई को महसूस करने लगी|
वहां के परिंदे और भवरे सुरीले साज छेड़ रहे थे, 
वो हर पल  खूबसूरत याद बन दिल में समां रहा था ||

पर शायद वो ख्वाब जिंदगानी की हकीकत बता गया ,
कुछ  आगे जाकर वो झील झरना बन गयी,
मेरी कश्ती उन्ही गहराईयो में खो गयी,
मुझे  होश कब आया ,कुछ  याद नही आता ,
पर मैंने खुद को कुछ  चट्टानों में पाया |

पल भर में खूबसूरत लम्हे खौफनाक बन गए ,
मैंने खुद को संभाला और उठ खड़ी हुई |
और जिन्दगी के उस मोड़ पर पहुंची ,
जहाँ मैं इसकी सचाई से वाकिफ हुई ....

 जिन्दगी हर मोड़ पर खूबसूरत हो ये जरूरी नही ,
और इसकी हर रह पथरीली हो ऐसा भी नही |
हर एक ख़ुशी - गम बिना अधूरी है ,
और बिना ख़ुशी -गम के जिन्दगी भी अधूरी है...

ये ख़ुशी -गम दोनों एक दुसरे के सच्चे है साथी ,
जो जिन्दगी की सुनहरी कश्ती को एक साथ मिलकर खेते है,
और हमे अपनी मंजिल तक पहुंचाते है ||



                                                                                                                        गार्गी (२००० )






Wednesday, May 4, 2011

Khuda

While typing the title I choose "Khuda" because some how I liked this word to best pronounce the God. I do not restrict myself in any religion because I am more comfortable to be a human.The more I know myself as a human it delights me, that I am not in a bounded wall of religion.I know there is someone who has made me think about that the God exist. Its my belief because in my life he supported me in my tough times though in a form of humans.
Human those who are part of my family, friends or some strangers but they helped me so I consider them as a form of God.To express my these thoughts long back I wrote this poem , hope who are reading this blog understand the depth of words.....

                                           खुदा

अ ' खुदा तू क्या है , कभी ये समझ न आया ,
किसी ने तुझे नानक तो  किसी ने राम बताया,

कोई कहता है कृष्ण , तो कोई पीर मोहम्मद ,
कभी साकार , तो कभी निराकार |

तू है या नही पर तेरा अहसास है ,
कि मेरे खुदा तू पाक है ||

जो इन्सान करता है मदद दुसरो कि लगता है यही खुदा है,
क्योंकि सुन रखा है , जिसकी मदद कोई नही करता खुदा करता है मदद उसकी ||

अ' मेरे पर्वतदिगार  , तेरी ये खूबियाँ हर दिल में है बसती,
पर जब तेरी रहम जिस किसी पर है बरसती ,

वो बन जाते है स्वरुप तेरा और खुदा है कहलाते ,
सच ही है जिसने जाना खुद को वही खुदा कहलाया  || 
  
                                                                                 गार्गी (२००१)